गुरु गोबिंद सिंह जी जयंती
➢ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार यह दिन दिसंबर या जनवरी में अथवा कभी – कभी वर्ष में दो बार भी आता है।
गुरु गोबिंद सिंह जी (वर्ष 1666 – वर्ष 1708) :-
• आध्यात्मिक गुरु, कवि व दार्शनिक गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म पौष माह की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को 22 दिसंबर 1666 में पटना साहिब, बिहार में हुआ था। नानकशाही कैलेंडर के अनुसार उनके जन्मोत्सव को प्रकाश पर्व के रुप में मनाया जाता है।
• वर्ष 1675 में अपने पिता व सिखों के 9 वें गुरु, गुरु तेग बहादुर के औरंगजेब की सेना से लड़ते हुए शहीद होने के बाद 9 वर्ष की आयु में गुरु गोबिंद सिंह जी ने बतौर सिखों के 10 वें व अंतिम गुरु के रूप में नेतृत्व की कमान संभाली।
• इन्होंने पांच सिद्धांत दिए हैं जिन्हें “पंच ककार” कहा जाता है। इनमें पांच चीजों को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त हैं- केश, कड़ा, कृपाण, कंघा और कच्छा।
• वर्ष 1699 में बैसाखी के दिन गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की तथा प्रत्येक सिख के लिए कृपाण या श्री साहिब धारण करना अनिवार्य किया।
प्रेरक वाक्य व वाणी :-
• सवा लाख से एक लड़ाऊँ चिड़ियों सों मैं बाज तड़ऊं तबे गोबिंदसिंह नाम कहाऊं।
• खालसा वाणी - वाहेगुरु जी दा खालसा वाहेगुरु जी दी फतह।
• मृत्यु से पूर्व उन्होंने गुरु ग्रंथ साहिब को स्थायी सिख गुरु के रूप में घोषित किया जो सिख धर्म में एक पवित्र ग्रंथ है।
इस अवसर पर आयोजन :-
• तीन दिनों तक गुरुद्वारों में पवित्र गुरु ग्रंथ साहिब के अखंड पाठ के साथ ही संगीतकारों और पंज प्यारों के नेतृत्व में जुलूस व खालसा पंत की झांकियां निकाली जाती है। लंगर के खास आयोजन में लोगों को व्यंजन, शरबत, शीतल पेय और मिठाई बांटी जाती हैं।
• बिहार के पटना साहिब गुरुद्वारें में संगतों की भारी भीड़ उमड़ती है, जहाँ गुरु गोबिंद सिंह जी की छोटी कृपाण, खड़ाऊ और कंघे सहित उनसे जुड़ी सभी चीजें मौजूद हैं।
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